कुछ करने की है आशा सी,
पथ ढूंढ़ रहा हूँ मैं कब से!
अनिश्चित है मंजिल अब तक,
चेतना मांगू में रब से!
अवचेतन मैं चलता रहा,
भाग्य का अनुसरण कर!
निरर्थक है जीवन अब तक,
प्रज्ञ नाविक मांगू मैं रब से!
समझौते मैं करता रहा,
सुगम राह चयनित कर!
पराजय का डर था अब तक,
प्रबलता मांगू मैं रब से!
- चन्दन ईश्पुनियानी
पथ ढूंढ़ रहा हूँ मैं कब से!
अनिश्चित है मंजिल अब तक,
चेतना मांगू में रब से!
अवचेतन मैं चलता रहा,
भाग्य का अनुसरण कर!
निरर्थक है जीवन अब तक,
प्रज्ञ नाविक मांगू मैं रब से!
समझौते मैं करता रहा,
सुगम राह चयनित कर!
पराजय का डर था अब तक,
प्रबलता मांगू मैं रब से!
- चन्दन ईश्पुनियानी