क्या सच में अच्छे दिन आने वाले हैं
या मेहंगाई के नए मायने रुलाने वाले हैं

क्या फिर बच्चे बेख़ौफ़ स्कूल जा पायेंगे
या फिर कहीं माँ बाप मासूमों की अर्थी उठाएंगे

क्या कुदरत से बद सलूकी कम होगी
या फिर सैलाबों से धरती नम होगी

क्या दोस्ती व् रिश्तों के लिए फुरसत होगी
या फिर belated wishes ही किस्मत होगी

क्या इंसान का इंसान पर फिर ऐतबार होगा
या फिर श्वानों पर ही वफ़ा का भार होगा

क्या बंद होगी फूट डालने की राजनीती
या फिर बढ़ेगी देश में राज्यों की गिनती

 
कुछ करने की है आशा सी,
पथ ढूंढ़ रहा हूँ मैं कब से!
अनिश्चित है मंजिल अब तक,
चेतना मांगू में रब से!

अवचेतन मैं चलता रहा,
भाग्य का अनुसरण कर!
निरर्थक है जीवन अब तक,
प्रज्ञ नाविक मांगू मैं रब से!

समझौते मैं करता रहा,
सुगम राह चयनित कर!
पराजय का डर था अब तक,
प्रबलता मांगू मैं रब से!


                                   -    चन्दन ईश्पुनियानी

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